Himalaya |
(1) 60 -65 किलोमीटर गहरी महाद्वीपीय प्लेटें
(2) 10 -15 किलोमीटर गहरी महासागरीय प्लेटें
ये प्लेटें पृथ्वी की पिघले हुए क्रोड़ पर तैरती रहती हैं तथा हजारों किलोमेटेर चौड़ी होती हैं. महासागर, महाद्वीप, नदियां, पर्वत, मैदान आदि इन गतिशील प्लाटों पर सवार यात्रियों की तरह हैं. पृथ्वी की क्रोड़ की सक्रियता की कारन ये प्लेट या भूखंड 1 -10 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष की दर्ज़ गतिशील रहती हैं. इस प्रक्रिया में कई चीजें देखने को मिलती हैं, मसलन जब ये प्लेटें एक दूसरेसे दूर-दूर होती जाती हैं तो नया 'मैग्मा' ऊपर आ जाता है और महासागरों की बीच पर्वत मेखलाएं बन जाती हैं. कहीं कहीं ये भूखंड या प्लेट एक दुसरे की सापेक्ष रगड़कर घिसती हैं तो बड़े बड़े भ्रंश बन जाते हैं, जैसे ---
केलिफोर्निआ में अगर ये प्लेट एक दूसरे की नीचे आ जाती हैं तो वहां ज्वालामुखी अथवा पर्वत श्रंखला बन जाती हैं. हिमालय पर्वत श्रेणी का उदय भी इसी प्रकार की प्रक्रिया से हुआ है. दरअसल आज जहाँ हिमालय पर्वत तथा उत्तर का विशाल मैदान है, वह कभी 'टेथिस सागर' हुआ करता था. अब तक किये गए शोधों से यह बात सामने आई है की लगभग 4 करोड़ वर्ष पूर्व हिन्द भूखंड तथा यूरेशियन भूखंड की आपस में टक्कर की बाद टेथिस सागर सिकुड़ता चला गया तथा जो 'मैग्मा' ऊपर आया वह धीरे धीरे मोड़दार पर्वतों की एक श्रंखला ( हिमालय ) की रूप में सामने आया. वैज्ञानिको का मानना है की 'टर्शरी काल' की उत्तरार्ध में लगभग 1 करोड़ वर्ष पूर्व मुख्य विवर्तनिक ( टेक्टॉनिक्स ) प्रक्रियाएं तो समाप्त हो गयी. मगर आंशिक विवर्तनिक प्रक्रियाएं आज भी जारी हैं. हिन्द प्लेट आज भी 5 .5 मिमी प्रतिवर्ष की गति से यूरेशियन प्लेट की अंदर धंस रही है, जिससे हिमालय पर्वत की ऊंचाई प्रतिवर्ष 1 -2 सेमी बढ़ रही है तथा यह दो सेमी प्रतिवर्ष की दर से उत्तर-पूर्व की ओर गतिशील है.